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थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों का इलाज होगा आसान, चढ़ाया जाएगा बकरे का खून
लुधियाना।
गुजरात को छोड़ देश के तमाम राज्यों में अब तक मानव रक्त चढ़ाकर ही थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों का इलाज किया जा रहा था, लेकिन अब अहमदाबाद के अखंडानंद आयुर्वेद अस्पताल की तर्ज पर पंजाब में भी बकरे के खून से इस गंभीर रोग से पीडि़त बच्चों का इलाज होगा। लुधियाना के मॉडल ग्राम स्थित सरकारी आयुर्वेदिक अस्पताल में यह प्रोजेक्ट शुरू होने जा रहा है। सरकारी स्तर पर पंजाब का यह पहला प्रोजेक्ट होगा। प्रोजेक्ट करीब 36 लाख रुपये का है। केंद्र ने 13 लाख रुपये की राशि जारी भी कर दी है।
लुधियाना सरकारी आयुर्वेदिक अस्पताल के इंचार्ज डॉ. हेमंत कुमार के अनुसार, कुछ माह पहले ही पंजाब से छह आयुर्वेदिक चिकित्सक गुजरात के अहमदाबाद स्थित अखंडानंद आयुर्वेद अस्पताल से बकरे के खून से थैलेसीमिक मरीजों के इलाज की पूरी ट्रेनिंग लेकर आए हैं। निजी अस्पताल अखंडानंद आयुर्वेद अस्पताल में इस पद्धति से थैलेसीमिक रोगियों को काफी लाभ पहुंचा है। उन्होंने बताया कि लुधियाना में सितंबर से इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू हो जाएगा। खून चढ़ाने के लिए गुजरात से विशेष उपकरण मंगवाए जा रहे हैं। बकरे के खून के लिए लुधियाना नगर निगम के स्लाटर हाउस से संपर्क किया गया है।लुधियाना सरकारी आयुर्वेदिक अस्पताल की चिकित्सक शिवाली अरोड़ा के अनुसार बकरे के खून से थैलेसीमिक मरीजों के इलाज की पद्धति नई नहीं है, बल्कि पांच हजार साल पुरानी है। आयुर्वेद में बकरे के रक्त को अजारक्त कहा जाता है। चरक संहिता में भी इसका उल्लेख है। इस पद्धति में एनिमा के जरिए बकरे के खून को मरीज की बड़ी आंत तक पहुंचाया जाता है, जहां रक्तकणों को अवशोषित कर लिया जाता है।
उन्होंने बताया कि इलाज के दौरान रोगी को हर्बल टेबलेट दिए जाते हैं। इसके अलावा बच्चे के बोनमैरो को सुधारने के लिए बकरे के बोनमैरो से बना आयुर्वेदिक दवा मिश्रित घी दिया जाता है। इससे बच्चे को जल्दी खून चढ़ाने की जरूरत कम हो जाती है। यदि किसी बच्चे को महीने में पांच बार खून चढ़ रहा है तो इस पद्धति के इलाज से यह घटकर दो बार या एक बार हो सकता है।'' बकरे के खून से थैलेसीमिक बच्चों के इलाज के प्रोजेक्ट को भारत सरकार ने स्वीकृति दे दी है। फंड भी आ चुका है। इलाज भी जल्द शुरू हो जाएगा।
from Dainik Jagran
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